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________________ / 227 ) प्रश्न १६६-क्रिया, भाव की विशेषता बताओ? उत्तर-प्रदेशो का चलनात्मक परिस्पन्द क्रिया है तथा प्रत्येक वस्तु मे धारावाही परिणाम भाव है। क्रियावान् दो जीव और पुद्गल है / भाववान छहो हैं। (764) प्रश्न १६७-सामान्य जीव का स्वरूप बताओ? उत्तर-जीव स्वत सिद्ध, अनादि अनन्त, अमूर्तिक, ज्ञानादि अनन्तधर्ममय, साधारण असाधारण गुण युक्त, लोकप्रमाण असख्यात किन्तु अखण्ड अपने प्रदेशो मे रहने वाला सबको जानने वाला किन्तु उन सब से भिन्न तथा उनसे और कोई सम्बन्ध न रखने वाला, अविनाशी द्रव्य है। सब जीव समान रूप से इसी स्वभाव के धारी हैं। (798, 766, 800) प्रश्न १९८-पर्यायदृष्टि से जीव के भेद स्वरूप बताओ? उत्तर--एक बद्ध, एक मुक्त / जो ससारी है और अनादि से ज्ञानावरणादि कर्मों से मूच्छित होने के कारण स्वरूप को अप्राप्त है, वह बद्ध है। जो सब प्रकार के कर्म रहित स्वरूप को पूर्ण प्राप्त है वह मुक्त (802) प्रश्न १९६-बन्ध का स्वरूप भेद सहित बताओ? उत्तर-बन्ध तीन प्रकार का होता है (1) भावबन्ध, (2) द्रव्यबन्ध, (3) उभयवन्ध / राग और ज्ञान के बन्ध को भाववन्ध या जीवबन्ध कहते हैं। पुद्गल कर्मों को अथवा उनकी कर्मत्वशक्ति को द्रव्यबन्ध कहते है। जीव और कर्म के निमित्त नैमित्तिक सवध को उभय बध कहते है। (815, 816) प्रश्न २००-निमित्तमात्र के नामान्तर बताओ? उत्तर-निमित्तमात्र, कर्ता, असर, प्रभाव, बलाधान, प्रेरक, सहायक, सहाय, इन सब शब्दो का अर्थ निमित्तमात्र है (प्रमाण-श्रीतत्त्वार्थ सार तीसरा अजीव अधिकार श्लोक न० 43)
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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