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________________ ( 221 ) - उपादेय माने तो उसका फल अनन्त ससार है / निश्चय नय का विषय उपादेय है। निश्चयनय का विषय जो सामान्य मात्र वस्तु है, यदि उसका आश्रय करे और निश्चयनय का विकल्प भी छोडे तो स्वसमयी है। उसका फल आत्मसिद्धि है। प्रश्न १६५-निश्चय और व्यवहार के जानने से क्या लाभ है ? उत्तर-व्यवहार भेद को कहते है / भेद मे राग आनव वध ससार है। निश्चय अभेद को कहते हैं। अभेद मे मोक्ष मार्ग, वीतरागता, सवर और निर्जरा है। प्रश्न १६६--फिर आचार्यों ने भेद का उपदेश क्यो दिया ? उत्तर-केवल अभेद को समझने के लिए। भेद मे अटकने के लिए नही / जो केवल व्यवहार के पीछे हाथ धोकर पडे हैं उनके लिए जिनोपदेश ही नही है। ऐसा पुरुषार्थसिद्धयुपाय मे कहा है। श्री समयसार जो मे व्यवहार को म्लेच्छभाषा और व्यवहारावलम्बी को मलेच्छ कहा है क्योकि म्लेच्छो के धर्म नही होता। प्रश्न १६७-व्यवहार तो ज्ञानियो के भी होता है ना ? उत्तर-ज्ञानियो के व्यवहार का अवलम्बन, आश्रय श्रद्धा मे कदापि नही होता किन्तु वे तो व्यवहार के केवल ज्ञाता होते है। व्यवहार का अस्तित्व वस्तु स्वभाव के नियमानुसार उनके होता अवश्य है पर ज्ञेय रूप से। प्रश्न १६८-व्यवहार को श्री समयसार जी में प्रयोजनवान कहा उत्तर-तुमने ध्यान से नही पढा वहाँ लिखा है। "जानने मे आता हुआ उस काल प्रयोजनवान है।" इसका अर्थ गुरुगम अनुसार यह है कि व्यवहार ज्ञानी की पर्याय मे उस समय मात्र के लिए ज्ञेय रूप से मौजूद है न कि इसका यह अर्थ है कि ज्ञानी को उसका आश्रय होता है (श्रीसमयसारजी गाथा 12 टीका)। श्री पचास्तिकाय गाथा 70 टीका मे लिखा है "कर्तृत्व और भोक्तृत्व के अधिकार को समाप्त करके
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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