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________________ ( 204 ) उत्तर-वस्तु न नित्य है न अनित्य है अखड है और अखड का वाचक शब्द कोई है ही नही। जो कहेगे वह विशेपण विशेष्य रूप हो जायगा और वह भेद रूप पडेगा। इसलिए अखण्ड दृष्टि से अनुभय है। इसको शुद्ध (अखण्ड) द्रव्याथिक दृष्टि भी कहते हैं। (415, 762) प्रश्न १०१-पूर्वोक्त प्रश्न 'नित्य किसे कहते है के उत्तर में जो द्रव्य दृष्टि कही है उसमें और अनुभय के उत्तर मे जो शुद्ध द्रव्य दृष्टि है इसमे दोनो से क्या अन्तर है ? उत्तर-वह पर्याय (अश) को गौण करके त्रिकाली स्वभाव अश की द्योतक है उसको द्रव्य दृष्टि या नित्य पर्याय दृष्टि भी कहते हैं और यहाँ दोनो अशो के अखण्ड पिण्ड को नित्य अनित्य का भेद न करके अखण्ड का ग्रहण शुद्ध द्रव्य दृष्टि है। यहाँ शुद्ध शब्द अखण्ड अर्थ में (761, 762) प्रश्न १०२-शुद्ध द्रव्यदृष्टि और प्रमाण मे क्या अन्तर है क्योंकि यह भी पूरी वस्तु को ग्रहण करती है और प्रमाण भी पूरी वस्तु को ग्रहण करता है ? उत्तर-प्रमाण दृष्टि मे नित्य अनित्य दोनो पडखो का जोड रूप ज्ञान किया जाता है। जैसे जो नित्य है वही अनित्य है। इसमे वस्तु उभय रूप है और उसमे वस्तु अनुभव गोचर है / शब्द के अगोचर है। अनिर्वचनीय है। उसमे नित्य अनित्य का भेद नहीं है। उसमे वस्तु अखण्ड एक रूप अखण्ड है। (762, 763) प्रश्न १०३-व्यस्त-समस्त किसको कहते हैं ? उत्तर-भिन्न-भिन्न को व्यस्त कहते है। अभिन्न को समस्त कहते है / स्वभाव दृष्टि से समस्त रूप है क्योकि स्वभाव का कभी भेद नही होता है जैसे जीव / अवस्था दृष्टि से व्यस्त रूप है क्योकि समय-समय . का परिणाम अर्थात अवस्था प्रत्यक्ष भिन्न-भिन्न रूप है जैसे मनुष्य देव / (416) प्रश्न १०४-क्रमवर्ती अक्रमवर्ती किसको कहते हैं ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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