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________________ (७) उत्तर--ज्ञानियो के समागम मे रहकर ही तत्त्व अभ्यास करना चाहिए और अज्ञानियो के समागम मे रहकर तत्त्व अभ्यास कभी भी नही करना चाहिए। प्रश्न १५-मोक्ष मार्ग प्रकाशक मे 'ज्ञानियो के समागम में तत्त्व अभ्यास करना और अज्ञानियो के समागम मे रहकर तत्त्व अभ्यास नहीं करना" ऐसा कहीं लिखा है ? उत्तर-प्रथम अध्याय पृष्ठ १७ मे लिखा है कि "विशेष गुणो के घारी वक्ता का सयोग मिले तो बहुत भला है ही और न मिले तो श्रद्धानादिक गुणो के धारी वक्ताओ के मुख से ही शास्त्र सुनना । इस प्रकार के गुणो के धारक मुनि अथवा श्रावक सम्यग्दृष्टि उनके मुख से तो शास्त्र सुनना योग्य है और पद्धनि बुद्धि से अथवा शास्त्र सुनने के लोभ से श्रद्धानादि गुण रहित पापी पुरुपो के मुख से शास्त्र सुनना उचित नही है।" प्रश्न १६-पाहुड़ दोहा मे "किसका सहवास नही करना चाहिए" ऐसा कहा लिखा है ? उत्तर-पाहुड दोहा वीस मे लिखा है कि "विष भला, विषधर सर्प भला, अग्नि या बनवास का सेवन भी भला, परन्तु जिनधर्म से विमुख ऐसे मिथ्यात्वियो का सहवास भला नही।" प्रश्न १७-अपना भला चाहने वाले को कौन-कौन सी सात बातो का निर्णय करना चाहिये ? उत्तर--(२) सम्यग्दर्शन से ही धर्म का प्रारम्भ होता है । (२) सम्यग्दर्शन प्राप्त किए बिना किसी भी जीव को सच्चे व्रत, सामायिक प्रतिक्रमण, तप, प्रत्याख्यानादि नही होते, क्योकि वह क्रिया प्रथम पाचवें गुणस्थान मे शुभभावरूप से होती है। (३) शुभभाव ज्ञानी और अज्ञानी दोनो को होते है । किन्तु अज्ञानी उससे धर्म होगा, हित होगा ऐसा मानता है। ज्ञानी की दृष्टि मे हेय होने से वह उससे कदापि हितरूप धर्म का होना नही मानता है। (४) ऐसा नही
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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