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________________ ( 146 ) प्रश्न १६-अकाम निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर-बाह्य प्रतिमल सयोग होने के समय मन्दकषायरूप भाव का होना, अकाम निर्जरा है। जैसे-छोटी उम्र में कोई विधवा हो जावे तव मन्दकपाय रक्खे, ब्रह्मचर्य से रहे, खाने को नाज ना मिले उस समय तीव्र आकुलता ना करे, किन्तु कषाय मन्द रक्खे, किसी को जेल हो जावे, वहाँ तीव्र आकुलता ना करे, किन्तु कषायमन्द रक्खे इत्यादि यह सव अकाम निर्जरा है। इसमे पाप की निर्जरा होती है और देवादि पुण्य का बन्ध होता है। प्रश्न २०-सविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर-ससारी जीवो को कर्म के उदयकाल में समय-समय अपनी स्थिनि पूर्ण होने पर जो कर्म के परमाणु खिर जाते है उसे सविपाक निर्जरा कहते हैं। प्रश्न २१-अविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर-सच्ची दृष्टि होने पर आत्मा के पुरुषार्थ द्वारा उदयकाल प्राप्त होने के पहले कर्मों का खिर जाना, अविपाक निर्जरा है। प्रश्न २२-अज्ञानी को कौन-कौन सी निर्जरा हो सकती है ? उत्तर-अज्ञानी को सविपाक निर्जरा हर समय होती है और किसी-किसी समय अकाम निर्जरा भी होती है। इस प्रकार अज्ञानी को चाहे वह द्रव्यलिंगी मुनि हो, उसे सविपाक निर्जरा और अकाम निर्जरा ही हो सकती है। प्रश्न २३-ज्ञानी को कितने प्रकार की निर्जरा हो सकती है ? उत्तर-ज्ञानी को चारो प्रकार की निर्जरा हो सकती है। प्रश्न २४-~-मिथ्यावृष्टि को कुछ नहीं करना हो तब वह अपने और दूसरो को धोका देने के लिए श्रद्धान-ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा किस-किस को याद करता है ? उत्तर-(१) तत्व श्रद्धान की बात आवे तब तिर्यंचो को याद करता है, (1) ज्ञान की बात आवे तब शिवभूति मुनि को याद करता
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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