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________________ (४) जिनवरवृपभो के कथन को सुनकर दीर्घ ससारी मिथ्यादृष्टि क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? प्रश्न २-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो ने पदार्थ का स्वरूप कंसा और क्या बताया है ? जिसके श्रद्धान से सर्व दुःख दूर हो जाता है ? उत्तर-"अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी-अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती है, कोई किसी के आधीन नही हैं, कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होती।" जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो ने बताया है कि पदार्थो का ऐसा श्रद्धान करने से सर्वदुख दूर हो जाता है। प्रश्न ३-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभों के ऐसे कथन को सुनकर ज्ञानी क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? उत्तर-केवली के समान पदार्थों के स्वरूप का ज्ञान हो गया है, मात्र प्रत्यक्ष और परोक्ष का अन्तर रहता है। ज्ञानी अपने त्रिकाली शायक स्वभाव मे विशेष स्थिरता करके श्रेणी मांडकर सिद्धदशा की .प्राप्ति कर लेते है। प्रश्न ४--जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर सम्यक्त्व के सन्मुख मियादृष्टि पात्र भव्य जीव क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? उत्तर-अहो-अहो ! जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो का कथन महान उपकारी है तथा प्रत्येक पदार्थ की स्वतन्त्रता ध्यान मे आ जाती है। अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव का आश्रय लेकर ज्ञानी बनकर ज्ञानी की तरह निज-स्वभाव मे विशेष एकाग्रता करके श्रेणी मांडकर सिद्धदशा की प्राप्ति कर लेते हैं। प्रश्न ५-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर दीर्घ संसारी मिथ्यादृ ष्टि क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? उत्तर-जिन-जिनवर और जिनवरवृपभो के कथन का विरोध
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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