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________________ ( १०२ ) प्रश्न १४६ - जिनदेव के सर्व उपदेश का क्या तात्पर्य है ? उत्तर - मोक्ष को हितरूप जानकर एक मोक्ष का उपाय करना ही सर्व उपदेश का तात्पर्य है । प्रश्न १५० - चारित्र का लक्षण (स्वरूप) क्या है ? उत्तर - (१) मोह और क्षोभ रहित आत्मा का परिणाम वह चारित्र है । (२) स्वरूप मे चरना वह चारित्र है । (३) अपने स्वभाव मे प्रवर्तन करना शुद्ध चैतन्य का प्रकाशित होना वह चारित्र है । ( ४ ) वही वस्तु का स्वभाव होने से धर्म है । जो धर्म है वह चारित्र है । (५) यही यथास्थित आत्मा का गुण होने से (अर्थात् विपमता रहितसुस्थित आत्मा का गुण होने से ) साम्य है । (६) मोह-क्षोभ के अभाव के कारण अत्यन्त निर्विकार ऐसा जीव का परिणाम है । [ प्रवचनसार गा० ७ तथा टीका से ] प्रश्न १५१ - व्यवहार सम्यक्त्व किस गुण की पर्याय है उत्तर - सच्चा देव - गुरु-शास्त्र, छह द्रव्य और सात तत्वो की श्रद्धा का राग होने से यह चारित्र गुण की अशुद्ध पर्याय है, किन्तु श्रद्धागुण की पर्याय नही है । प्रश्न १५२ -- जिसको सच्चा देव गुरु-धर्म का निमित्त बने, वह अपना कल्याण ना करे, तो इस विषय मे भगवान की क्या आज्ञा है ? उत्तर- (१) जैसे -- किसी महान दरिद्री को अवलोकन मात्र से चिन्तामणि की प्राप्ति होने पर भी उसको न अवलोके । तथा जैसेकिसी कोढी को अमृत पान कराने पर भी वह न करे, उसी प्रका ससार पीडित जीव को सुगम मोक्षमार्ग के उपदेश का निमित्त बन पर भी, वह अभ्यास ना करे, तो उसके अभाग्य की महिमा कौन क सके । (२) वर्तमान मे सत्गुरु का योग मिलने पर भी तत्वनिर्णय करने का पुरुषार्थ ना करे, प्रमाद से काल गँवाये, या मन्द रागादि सहित विषय कषायो मे ही प्रवर्ते या व्यवहार धर्म कार्यो मे प्रवर्ते तो अवस चला जायेगा और ससार मे ही भ्रमण रहेगा । (३) यह अवसर चूकना
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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