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________________ ( ६५ ) प्रश्न ११५-फर्म के उपशमादि क्या है ? उत्तर-पुद्गल द्रव्य की अवस्था है। प्रश्न ११६-कर्म के उपशमादिक का कर्ता कोन है और कौन उत्तर-कर्म के उपशमादिक तो पुद्गल की पर्याये हैं। उनका कर्ता कार्माणवर्गणा है, जीव और अन्य वर्गणा मे इनका कर्ता नहीं हैं। प्रश्न ११७-कर्म के उपशमादिक का और आत्मा का कैसा सम्बन्ध है ? उत्तर-जव आत्मा यथार्थ पुरुषार्थ करता है तव कर्म के उपशमादिक स्वय स्वत हो जाते हैं। इनका स्वतन्त्र रूप से निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है। जो स्वतन्त्रता का सूचक है, परतन्त्रता का सूचक नही है। प्रश्न ११८-इन पांच कारणो मे से किसके द्वारा मोक्ष का उपाय बनता है ? उत्तर-जव जीव अपने ज्ञायक स्वभाव के सन्मुख होकर यथार्थ पुरुषार्य करता है, तब काललब्धि, भवितव्य और कर्म के उपशमादिक स्वयमेव हो जाते हैं। प्रश्न ११६-'समवाय' किसे कहते हैं ? उत्तर-मिलाप, समूह को समवाय कहते हैं। प्रश्न १२०--मोक्ष मे किसकी मुख्यता है ? उत्तर-पुरुषार्थ की मुख्यता है। प्रश्न १२१-जीव का कर्तव्य क्या है ? उत्तर-जीव का कर्तव्य तो तत्त्वनिर्णय का अभ्यास (अपने स्वभाव का आश्रय)ही है। वह करे तब दर्शनमोह का उपशम स्वयमेव होता है, किन्तु द्रव्यकर्म मे जीव का कुछ भी कर्तव्य नहीं है। प्रश्न १२२-मोक्ष के उपाय के लिए क्या करना चाहिए ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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