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________________ ( ७८ ) (१) जैसे पुद्गल में स्पर्श रसादि गुण अनादि से हैं; उमी प्रकार द्रव्य में गुण अनादि से हैं। (२) जैसे पुद्गल में स्पर्श रसादि सम्पूर्ण भागों में हैं: उसी प्रकार द्रव्य में गुण सम्पूर्ण भागों में हैं। (३) जैसे पुद्गल में स्पर्श, रसादि सम्पूर्ण अवस्थाओं में हैं; उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य में गुण सम्पूर्ण अवस्थाओं में हैं। (४) जैसे पुद्गल में से स्पर्शरसादि गुण कभी निकल कर बिखर नही जाते क्योकि उनका द्रव्यक्षेत्र काल एक ही है; उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य में गुण कभी निकलकर बिखर नहीं जाते क्योंकि प्रत्येक गुण का द्रव्यक्षेत्र काल एक ही है। प्रश्न (१०६)--क्या जैसे एक थैली में चावल भर दिये उसी प्रकार द्रव्य में गुण है ? उत्तर- बिल्कुल नहीं. क्योंकि (उत्तर १०४ के अनुसार) प्रश्न (११०)--क्या जैसे जीव में ज्ञानदर्शनादि हैं; उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य मे गुण हैं ? उत्तर- हाँ ऐसे ही हैं ; क्योंकि (उत्तर १०८ के अनुसार) प्रश्न (१११)-क्या जैसे एक किताब में ५०० पन्ने हैं वैसे ही द्रव्य मे गुण हैं ? उत्तर-बिल्कुल नहीं , क्योंकि (उत्तर १०४ के अनुसार)
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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