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________________ ( ५६ ) लोकाकाश रूपी गुफा में जाति अपेक्षा छह द्रव्य है वह सब अपने अपने कार्य में लीन हैं तब पर की ओर देखना नहीं रहा, मात्र अपनी ओर देखना रहा । प्रश्न (३४)-जब सब द्रव्यों के पास अनन्त २ गण हैं और स्वयं भगवान है तब अज्ञानी जीव पर की ओर क्यों देखता है ? उत्तर- (१) अज्ञानी ना देखेगा तो क्या ज्ञानी देखेगा ? अरे भाई अज्ञानी का स्वभाव ही ऐसा होता है। (२) अज्ञानी को जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा का पता न होने से पर की ओर देखता है। प्रश्न (३५)--जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा क्या है ? उत्तर- "अनादिनिधन वस्तु जुदी जुदी अपनी अपनी मर्यादा लिए परिणमें है, कोई किसी का परिणमाया, परिणमता नहीं, यह जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा है ? प्रश्न (३६)-तत्त्वार्थ सूत्र जी में भगवान की क्या प्राज्ञा है ? उत्तर-सत् द्रव्य लक्षणम् ।। उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्त सत् ।। प्रश्न (३७)-जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा पालने के लिए क्या करे, तो धर्म की शुरुआत हो ? उत्तर-मैं अनन्तगुणो का अभेद भूतार्थ स्वभावी भगवान हूँ ऐसा जानकर उसका आश्रय, ज्ञान, आचरण करे तो धर्म की शुरुग्रात हो। प्रश्न (३८)-चारों गतियों का प्रभाव करने के लिए क्या करे तो पंचमगति की प्राप्ति हो?
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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