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________________ ( ४८ ) उत्तर-समयसार गा) २७३-२७४- २७५ तथा गा० ३१७ देखो। क्योकि आत्म ज्ञान हुये बिना ११ अंग का ज्ञान मिथ्याज्ञान है और व्रतादि सव मिथ्या चारित्र हैं। प्रश्न (१३६)--क्या करे ? उत्तर-मोक्ष महल की प्रथम सीढी, या बिन ज्ञान चरित्रा। सम्पकता न लहे, सो दर्शन. धारो भव्य पधित्रा। 'दौल' समझ, मुन, चेत स्याने काल वृथा मत खोवै । यह नरभव फिर मिलन कठिन है जो सम्यक नहिं होवे।। ॥ छ:ढाला ॥ प्रश्न (१३७)-सम्यग्दर्शन के लिए क्या करना ? उत्तर-विश्व के पदार्थों में से एक मेरी आत्मा ही आश्रय करने योग्य है ऐसा जानकर अपनी आत्मा का प्राश्रय लेते ही सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो जाती है। अनादि से अनन्तकाल तक जिन, जिनवर और जिनवरवषभों ने विश्व का स्वरुप बताया है और बतायेगें उन सब के चरणों में अगणित नमस्कार । - - -
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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