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________________ ( ३६ ) (३) प्रवचनसार गाथा २१, ३७, ४७, २०० की टीका सहित में आया है। (४) अष्टपाहुड भावपाहुड़ गा० १५० पं० जयचन्द्र जी की टीका में आया है । (५) महाबंघ, महाधवला सिद्धान्तशास्त्र प्रथम भाग प्रकृति बधाधिकार पृष्ठ ६७ में आया है । (६) धवल पुस्तक १३ पृष्ट ३४६ से ३५३ तक में आया है । सब दिगम्बर शास्त्रों में श्राया है । प्रश्न ( ४ ) -- जब केवली और साधक ज्ञानी सब जानते हैं तो दिगम्बर धर्मके पंडित कहे जाने वाले और त्यागी नाम धराने वाले ऐसा क्यों कहते है; (१) केवली भगवान भूत और वर्तमान कालवर्ती पर्यायों को ही जानते हैं और भविध्यत् पर्यायों को, वे हों तब जानते हैं । (२) सर्वज्ञ भगवान अपेक्षित धर्मों को नहीं जानते है । (३) केवली भगवान भूत-भविष्यत पर्यायों को सामान्य रूप से जानते हैं किन्तु विशेष रुप से नहीं जानते हैं । (४) केवली भगवान भविष्यत पर्यायों को समग्ररुप से जानते हैं भिन्न-भिन्न रुप से नही जानते हैं । (५) ज्ञान सिर्फ ज्ञान को ही जानता है ।
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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