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________________ ( १७४ ) किया है उसका एक का नमूना बतायो ताकि सब समझ में आ सके ? उत्तर-(१ पुदगल द्रव्य से अलग किया है (२) पुद्गल द्रव्य के गुण से अलग किया है (३) पुद्गल द्रव्य की पर्याय द्रव्येन्द्रिय के पालम्बन से अलग किया है (४ क्षयोपशम रुप ज्ञान से अलग किया हैं (५। अखंडपने सबको सर्वथा जानने वाला स्वभाव होने पर मात्र रस को जाने इससे अलग किया है । (६) रस सम्बधी ज्ञान होने पर भी रसरूप नहीं होता है। इस प्रकार प्रात्मा को इन सब से पृथक बताकार चेतना गुण के द्वारा ही अनुभव में आता है ऐमा बताया है। इसलिए हे आत्मा तू "एक टन्कोत्कीर्ण परमार्थ स्वरूप का आश्रय ले तो शान्ति प्रगटे । प्रश्न (२६७)-क्रियावनी शक्ति क्या है ? उत्तर-जीव और पुद्गल द्रव्य का विशेष गुण है। प्रश्न (२६८)-क्रियावती शक्ति का परिणमन कितने प्रकार का है ? उत्तर- दो प्रकार का है । गमन रुप और स्थिर रुप । प्रश्न (२६६)-क्रियावती शक्ति को जानने का क्या लाभ है ? उत्तर--(१) जीव अनादि से यह मानता था कि मैं शरीर को चलाता हूं और शरीर मुझे चलाता है। (२) गुरुगम के बिना शास्त्र पढ़ा तो कहने लगा धर्मद्रव्य जीव पुद्गल को चलाता है और अधर्मद्रव्य ठहराता है (३) सच्चे सतगुरु का समागम हुआ तो जाना कि आत्मा में और प्रत्येक परमाणु में क्रियावती शक्ति गुण है यह दोनों अपनी अपनी योग्क्ता से चलते है और ठहरते हैं
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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