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________________ ( १४८ ) है तथापि लोक व्यवहार मे 'मनुष्य, देव' बोला जाता है । इसलिए ज्ञानियों को ही द्रव्यपर्याय का सच्चा ज्ञान होता है । प्रश्न ( १४३ ) - समानजातीय द्रव्यपर्याय और असमानजातीय द्रव्यपर्याय का सच्चा ज्ञान अज्ञानियों को क्यों नहीं होता है ? उत्तर - वह (अज्ञानी) (१) पृथक पृथक द्रव्यों को एक मानते हैं ( २ ! दोनों के मिलने से हुई हैं ऐसा मानते हैं । (३) एक एक द्रव्य का सच्चा ज्ञान ना होने अर्थात् अपना ज्ञान ना होने से द्रव्यलिंगी आदि सब मिथ्यादृष्टियों का समानजातीय और असमानजातीय द्रव्यपर्याय का सब ज्ञान झूठा है । प्रश्न (१४४) - शास्त्र के अनुसार द्रव्यलिंगी कहे कि एक २ द्रव्य अलग २ है और एक एक द्रव्य एक व्यंजन पर्याय और अनन्त अर्थ पर्याय सहित बिराज रहा है तो क्या उसका ज्ञान सच्चा होगा या नहीं ? उत्तर - अपनी आत्मा का ज्ञान ना होने से मिथ्यादृष्टियों का, शास्त्र के 'अनुसार कहने पर भी, सब ज्ञान मिथ्याज्ञान श्रीर सब चारित्र, मिथ्या चारित्र है । प्रश्न (१४५ ) -- अपना ज्ञान हुवे बिना मिथ्याहृष्टि का सब ज्ञान झूठा है ऐसा कहां पाया है ? उत्तर-- भगवान उमास्वामी जी ने तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय के ३२ वे सूत्र में कहा है कि "सद सतोर विशेपाचच्छोपलब्धेरन्मन्तवत्"
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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