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________________ f 3 (55) सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से वृद्धि होकर मोक्ष लक्ष्मी का नाथ होना । ( ४ ) मिथ्यात्वादि ससार के पाँच कारणों का अभाव होना । (५) द्रव्य-क्षेत्र काल-भव भावरूपी पचपरावर्तन का अभाव होकर पचपरमेष्टियो मे उनकी गिनती होना । प्रश्न ७४ - विश्व मे प्रत्येक कार्य उस समय पर्याय को योग्यता क्षणिक उपादानकारण से हो होता है। तब कौन-कौन सी चार बातें एक साथ एक ही समय मे नियम से होती हैं ? उत्तर- (१) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण ( उत्पाद ) (२) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण (व्यय) (३) त्रिकाली उपादान कारण (धीव्य ) (४) निमित्तकारण | ये चार बाते प्रत्येक कार्य मे एक साथ एक ही काल मे नियम से होती है । [ प्रवचनसार गाथा ६५ ] प्रश्न ७५ -- उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही कार्य की उत्पत्ति हुई। क्या यह निरपेक्ष है ? उत्तर - हाँ, कार्य स्वय परकी अपेक्षा नही रखता इसलिए निरपेक्ष है और अपनी अपेक्षा रखता है इसलिए सापेक्ष है । पात्र भव्य जीवो को प्रथम निरपेक्ष सिद्धि करनी चाहिए । फिर जो कार्य हुआ उसका अभावरूप कारण कौन है, त्रिकालीकारण कौन है और निमित्त कारण कौन है । इन वातो का ज्ञान करना चाहिए क्योकि कार्य के समय चारो वाते नियम से होती हैं । प्रश्न ७६ - चाक, कोली, डडा, हाथ आदि कार्य उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकरण से हुआ है । ऐसा मानने के किसकिस कारण पर दृष्टि नही जाती है ? उत्तर --- (१) कुम्हार, घडा । (२) चाक, कीली, डडा, हाथ आदि आहारवर्गणा के स्कध । ( ३ ) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण आदि पर दृष्टि नही जाती है । प्रश्न ७७ - क्या कुम्हार कारण और चाक, कोली, डंडा हाथ
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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