SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५८ ) कम राग दिखाई देता है (२) एक मिथ्यात्वी है, एक सम्यक्त्वी है इससे मोहनीय कर्म की सिद्धि होती है । ___अन्तराय कर्म-(१) कोई तीव्र पुरुषार्थ करता है और कोई मन्द पुरुषार्थ करता है इससे अन्तराय कर्म की सिद्धि होती है। इस प्रकार धाति कर्म चार हैं यह सब पाप रूप हैं। अघानि मे पुण्य-पाप का अन्तर पडता है, इस प्रकार तर्क से ८ कर्म की सिद्धि होती है और जिनवाणी मे भी आठ कर्म बतलाये हैं। प्रश्न २३२-कर्म की कितनो दशा हैं ? उत्तर-चार है-(१) उदय (२) क्षय (३) क्षयोपशम (४) उपशम। प्रश्न २३३-आठ कर्मों में से उदय कितने कर्मों में होता है ? उत्तर-आठ कर्मों मे उदय होता है। प्रश्न २३४-आठो कर्मों में से क्षय कितने कर्मों मे होता है ? उत्तर-आठो कर्मों में क्षय होता है। प्रश्न २३५-आठो कर्मो मे से क्षयोपशम कितने कर्मों में होता उत्तर-चार घातिया कर्मो मे क्षयोपशम होता है। प्रश्न २३६-आठ कर्मों मे से उपशम कितने कर्मों मे होता है ? उत्तर-एक मात्र मोहनीय कर्म मे ही उपशम होता है। प्रश्न २३७-आठ कर्मों में उदय आदि कुल कितने भेद हुए ? उत्तर-(१) उदय के आठ भेद, (२) क्षय के आठ भेद, (३) क्षयोपशम के चार भेद, (४) उपशम का एक भेद, इस प्रकार कुल २१ भेद हुए। प्रश्न २३८-ज्ञानावरणीय कर्म में कितनी दशा होती है ? उत्तर-तीन होती है-उदय, क्षय, क्षयोपशम । प्रश्न २३६-दर्शनावरणीय कर्म मे कितनी वशा होती हैं ? उत्तर-तीन होती है-उदय, क्षय, क्षयोपशम ।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy