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________________ ( ५१ ) उत्तर - प्रश्न १८४ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न १८६ - गुरु से ज्ञान हुआ -- अपादान कारक को कब माना और कब नहीं माना ? उत्तर -- प्रश्न १८४ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न १६० - देव - गुरु से सम्यक्त्व हुआ -- अपादान कारक को कब माना और कब नहीं माना ? उत्तर - प्रश्न १८४ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न १६१ - ज्ञानावरणीय द्रव्यकर्म के क्षय मे से केवलज्ञान हुआ -- अपादान कारक को कब माना और कब नहीं माना उत्तर - प्रश्न १८४ के अनुसार उत्तर दो । ? प्रश्न १६२ - बाई ने रोटी बनाई, क्या अपादान कारक को ? माना उत्तर- नही माना, क्योकि रोटी अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण लोई का अभाव करके ध्रुव आटे मे से आई बाई मे से नही, तब अपादान कारक को माना । प्रश्न १६३ - कोई चतुर कहे, बाई में से ही रोटी आई, ऐसा माने तो क्या दोष आता है ? उत्तर—अपादान कारक को उडा दिया । अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण लोई के अभाव को और प्रोव्य आटे को भी उड़ा दिया । प्रश्न १६४ -- अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का तो अभाव हो जाता है, उसमें से उत्पाद कैसे हो सकता है उत्तर -- वास्तव मे अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण के अभाव मे से उत्पाद नही होता है वह तो उस समय पर्याय की योग्यता मे से होता है, यह तो अभावरूप उपादान कारण की अपेक्षा ज्ञान कराया है ।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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