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________________ ( ४८ ) प्रश्न १६६-क्या सोने का हार पहनने के लिए बना है ? इसमें सम्प्रदान कारक को कब माना और कब नही माना ? उत्तर--प्रश्न १६६ व १६७ के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७०~-क्या सम्यग्दर्शन पदार्थों के शटान के लिए है ? इसमे सम्प्रदानकारक को कव माना और कब नहीं माना? उत्तर--प्रश्न १६६ व १६७ के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७१-क्या केवलज्ञान पादर्थो के जानने के लिए है ? इस वाक्य मे सम्प्रदान कारक को कन माना और कब नही माना? उत्तर-प्रश्न १६६ व १६७ के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७२-क्या कमरा लोगो के रहने के लिए है ? इस वाक्य मे सम्प्रदानकारक को कब माना और कब नही माना? उत्तर-प्रश्न १६६ व १६७ के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७३-क्या अलमारी किताबें रखने के लिए है ? इस वाक्य मे सम्प्रदानकारक को कब माना और कब नही माना ? उत्तर--प्रश्न १६६ व १६७ के अनुसार उत्तर दो। अपादानकारक का स्पष्टीकरण प्रश्न १७४~-अपादान कारक किसे कहते हैं ? उत्तर-जिसमे से कर्म (क्रिया) किया जाय उस ध्रुव वस्तु को अपादान कारक कहते हैं। प्रश्न १७५-अपादान कारक क्या बताता है ? उत्तर-- जो उत्पाद हुआ वह अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान के अभाव को और ध्रुव को बताता है । प्रश्न १७६--अपादान कारक में कितने उपादान कारण आते हैं ? उत्तर-तीनो उपादान कारण आ जाते है। प्रश्न १७७-'केवलज्ञान' हुआ-इसमे तीनो उपादान कारक किस प्रकार आये ?
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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