SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३५ ) ? प्रश्न ७६ -- कर्मकारक का ज्ञान क्यो कराया जाता है उत्तर - ( १ ) शान्ति प्राप्त कराने के लिए और शान्ति प्राप्त करने के लिये । (२) वस्तुस्वरूप समझाने के लिये और समझने के लिये । (३) अनादिकाल की खोटी मान्यता नष्ट करने के लिये और कराने के लिये कर्मकारक का ज्ञान कराया जाता है । प्रश्न ८०- - कर्म कारक को किस-किस मान्यता वाले ने नहीं माना और उसका फल क्या हुआ ? उत्तर- जैसे - रोटी बनी, उसमे ( रोटी बनने मे ) (१) वाई, चकला, वेलन कर्त्ता है (२) आटा कर्ता है । (३) लोई उसका कर्त्ता है आदि मान्यता वालो ने कर्मकारक को नही माना और उसका फल मिथ्यादर्शनादि की पुष्टि होकर निगोद की प्राप्ति होती है । ? प्रश्न ८१ - कर्म कारक किसने माना और उसका फल क्या हुआ उत्तर - कार्य "उस समय पर्याय की योग्यता से ही " होता है, होता रहेगा ओर होता रहा है। इससे क्रमबद्ध पर्याय की सिद्धि हो गई और सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रमश निर्वाण की ओर गमन होना इसका फल है | २ प्रश्न ८२ - कर्म कितने प्रकार का होता है। उत्तर- (१) द्रव्यकर्म, (२) नोकर्स, (३) भाककर्म, (४) कर्म अर्थात् कार्य और ( ५ ) कर्म नाम का कारक । प्रश्न ८३- इन पाँच प्रकार के कर्मों मे से सिद्ध भगवान मे कौनकौनसा कर्म है ? उत्तर - चौथे और पाँचवे नम्बर का कर्म है | प्रश्न ८४ - कर्म अर्थात् कार्य होता है उसमें कितने कारण कहलाते हैं और सच्चा कारण कौन है ? उत्तर - चार कहलाते है - ( १ ) निमित्त कारण, (२) त्रिकाली कारण, (३) अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण, (४) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण । इन चारो
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy