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________________ ( 242 ) आत्मा को महिमा भैया महिमा ब्रह्म की, कैसे वरनी जाय / वचन अगोचर वस्तु है कहिवो वचन बताय // 43 अर्थ-भगवतीदास जी आत्म स्वभाव की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भाई / ब्रह्म की (आत्म-स्वभाव की महिमा का वर्णन कैसे किया जा सकता है। वह वस्तु वचन अगोचर है उसे किन वचनों के द्वारा बताया जा सकता है। सरस संवाद उपादान अरु निमित्त को, सरस बन्यो संवाद / समदृष्टि को सरल है, मूरख को बकवाद // 44 अर्थ-उपादान और निमित्त का यह सुन्दर सम्वाद वना है यह सम्यग्दृष्टि के लिए सरल है और मिथ्यादृष्टि के लिए वकवाद मालूम होगी। जो आत्मा के गुणो को पहिचानता है वह इस स्वरूप को जाणे जो जाने गुण ब्रह्म के, सो जाने यह भेद / साख जिनागम सो मिले, तो मत कीज्यो खेद // 45 अर्थ-आत्मा के गुणो को जो जानता है, वह इसका मर्म जानता है। इस स्वरूप की साक्षी जिनागम से मिलती है इसलिए इसमे शका नही करना चाहिए। आगरा में संवाद बनाया नगर आगरा अन है, जैनी जन को वास / तिहथानक रचना करो, 'भैया' स्वमति प्रकाश // 46 अर्थ-आगरा मे जैनियो का वास ज्यादा है। वहाँ पर भईया भगवती दास ने अपने ज्ञान के अनुसार यह रचना की है अथवा अपने ज्ञान के प्रकाश के लिए यह रचना की है। रचना काल-संवत् विक्रम भूप को सत्तरह से पचास / फाल्गुन पहले पक्ष में दशो विशा परकाश // 47
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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