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________________ ( 238 ) __ अर्थ-उपादान कहता है-जिसका नाम नही होता वह वलवान है / जो उत्पन्न होता है और जिसका विनाश होता है वह वलवान कैसे हो सकता है ? नोट-(उपादान त्रिकाली अखड एकरूप वस्तु स्वय है इसलिए उसका नाश नहीं। निमित्त तो सयोगरूप है--आता और जाता है इसलिए नाशरूप है / अत उपादान ही वलवान है)। निमित्त-उपादान तुम जोर हो तो क्यो लेत अहार। __ पर निमित्त के योग सो जीवत सब संसार // 24 अर्थ-निमित्त कहता है कि हे उपादान | यदि तेरा वल हो तो तू आहार क्यो लेता है / ससार के सभी जीव पर निमित्त के योग से जीते है। उपादान-जो अहार के जोग सो, जीवित है जगमाहि। तो वासी ससार के, मरते कोऊ नांहि // 25 अर्थ-उपादान कहता है कि यदि आहार के योग से जगत के जीव जीते हो, तो ससारवासी कोई भी जीव नही मरता। निमित्त-सूर सोम मणि अग्नि के, निमित्त लखें ये नैन / अन्धकार मे कित गयो, उपादान दूग दैन // 26 अर्थ-निमित्त कहता है--सूर्य, चन्द्रमा, मणि अथवा अग्नि का निमित्त हो तो आँख देख सकती हैं। यदि उपादान देखने का काम कर सकता हो तो अधकार में उसकी देखने की शक्ति कहाँ चली जाती है (अन्धकार मे आँख से क्यो नही दिखाई देता)। उपादान-सूर, सोम, मणि, अग्नि जो करे अनेक प्रकाश / नन शक्ति बिन ना लखे, अन्धकार सम भास // 27 अर्थ-उपादान कहता है कि सूर्य, चन्द्रमा, मणि और दीपक अनेक' प्रकार का प्रकाश करते हैं। तथापि देखने की शक्ति के बिना कुछ भी नही दिखाई देता, सब अन्धकार सा भासित होता है /
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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