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________________ ( 227 ) स्पष्ट कर दिया है, सन्तो ने सारा मार्ग सरल और सुगम बना दिया है, उसमे वीच मे कही अटकना पडे ऐसा नही है / पर से भिन्न ऐसी स्पष्ट वस्तुस्वरूप समझे तो मोक्ष हो जाये। बाहर से तथा अन्दर से ऐसा भेदज्ञान समझने पर मोक्ष हथेली मे आ जाता है। मैं तो पर से पृथक हूँ और मुझ मे एक गुण का कार्य दूसरे गुण से नही है-यह महान सिद्धात समझने पर स्वाश्रय भाव से अपूर्व कल्याण प्रगट होता ___कर्म अपने कर्ता के विना नही होता-यह वात तीसरे वोल मे कही, और चौथे पोल मे कर्ता की (-वस्तु की) स्थिति एकरूप अर्थात् सदा एक समान नही होती, परन्तु वह नये-नये परिणामो रूप से बदलती रहती है यह बात कहेगे। हर वार प्रवचन मे इस चीथे बोल का विशेष विस्तार होता है, इस बार दूसरे वोल का विशेप विस्तार आया है। कर्ता के बिना कार्य नही होता यह सिद्धात है, वहा कोई कहे कि यह जगत सो कार्य है और ईश्वर उसका कर्ता है, तो यह बात वस्तुस्वरूप की नही है। प्रत्येक वस्तु स्वय ही अपनी पर्याय का ईश्वर है और वही कर्ता है, उससे भिन्न दूसरा कोई ईश्वर या अन्य कोई पदार्थ कर्ता नहीं है। पर्याय सो कार्य और पदार्थ उसका कर्ता। ___ कर्ता के बिना कार्य नहीं और दूसरा कोई कर्ता नहीं। कोई भी अवस्था हो-शुद्ध अवस्था, विकारी अवस्था या जड अवस्था, उसका कर्ता न हो ऐसा नही होता तथा दूसरा कोई कर्ता हो-ऐसा भी नही, होता / तो क्या भगवान उसके कर्ता है ? हां, भगवान कर्ता अवश्य है, परन्तु कौन भगवान ? अन्य कोई भगवान नहीं परन्तु यह आत्मा स्वय अपना भगवान है वह कर्ता होकर अपने शुद्ध-अशुद्ध परिणामो को करता है। जड के परिणाम को जड पदार्थ करता है, वह अपना भगवान है। प्रत्येक वस्तु अपनी-अपनी
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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