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________________ ( 195 ) पूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण से पृथक करने की अपेक्षा से और सच्चे कारण-कार्य का ज्ञान कराने के लिये मुह खुला उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण का बताना आवश्यक था। इसलिये तीनो कारणो का सच्चा ज्ञान कराने के लिये जिनवाणी मे इतना लम्बा-लम्बा करके समझाया है। C. प्रश्न 15-(1) आत्मा का चारित्र गुण त्रिकाली उपादान कारण और राग उपादेय। (2) अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण और राग उपादेय। (3) राग उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण और राग उपादेय-- ऐसा जिनवाणी में आया है। परन्तु इतना लम्बा-लम्बा झगडा करने से क्या लाभ था? कह देते कि राग कार्य उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ही होता है ? उत्तर-(१) निमित्त कारणो से पृथक करने की अपेक्षा से आत्मा का चारित्र गुण त्रिकाली उपादान कारण को बताना आवश्यक था। (2) भूत-भविष्य की पर्यायो से पृथक करने की अपेक्षा से और अभाव रूप कारण का ज्ञान कराने के लिए नौ नम्बर अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का बताना आवश्यक था। (3) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण से पृथक् करने की अपेक्षा से और सच्चे कारण-कार्य का ज्ञान कराने के लिए राग उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण को वताना आवश्यक था। इसलिए तीनो कारणो का सच्चा ज्ञान कराने के लिए जिनवाणी मे इतना लम्बा-लम्बा करके समझाया है। D. प्रश्न 15-(1) आत्मा का ज्ञान गुण त्रिकाली उपादान कारण और ज्ञान उपादेय। (2) अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण और ज्ञान उपादेय। (3) ज्ञान उस समय पर्याय को योग्यता क्षणिक उपादान कारण और ज्ञान उपादेयऐसा जिनवाणो मे आया है। परन्तु इतना लम्बा-लस्वा झगड़ा करने 44
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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