SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 182 ) की उत्पत्ति मानते है / (1) उन्हे समयसार कलश 55 मे कहा है कि उनका सुलटना दुनिवार है और यह उनका अज्ञान मोह अन्धकार है। (2) उन्हे प्रवचनसार गाथा 55 मे कहा है कि वह पद-पद पर धोखा खाता है। (3) उन्हे पुरुषार्थ सिद्धियुपाय गाथा 6 मे कहा कि "तस्य देशना नास्ति।" (4) उन्हे आत्मावलोकन मे कहा है कि "यह उनका हरामजादीपना है।" ____D. प्रश्न ५-जो राग, बोलना, मुंह खुलना आदि निमित्त कारणों से ही जान की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे जिनवाणी में किन-किन नामों से सम्बोधन किया है ? उत्तर~जो राग, बोलना, मुह खुलना आदि निमित्त कारणो से ही ज्ञान की उत्पत्ति मानते है। (1) उन्हे समयसार कलश 55 मे कहा है कि उनका सुलटना दुनिवार है और यह उनका अज्ञान मोह अन्धकार है। (2) उन्हे प्रवचनसार गाथा 55 मे कहा है कि वह पदपद पर धोखा खाता है / (3) उन्हे पुरुषार्थ सिद्धियुपाय गाथा 6 मे कहा है कि "तस्य देशना नास्ति।" (4) उन्हे आत्मावलोकन मे कहा है कि यह उनका हरामजादीपना है। A. प्रश्न ६-भाषा वर्गणा त्रिकाली उपादान कारण और बोलने रूप कार्य उपादेय / इसको समभने से क्या-क्या लाभ हुआ ? .. उत्तर-आत्मा, मुंह आदि निमित्त कारणो से बोलने रूप कार्य हुआ-ऐसी खोटी मान्यता का अभाव हो जाता है / (2) बोलने रूप भाषा वर्गणा को छोडकर दूसरी वर्गणाओ से दृष्टि हट जाती है / (3) अब यहां पर बोलने रूप कार्य के लिए एक मात्र बोलने रूप भाषा वर्गणा की तरफ देखना रहा। B. प्रश्न ६-मुंह रूप आहार वर्गणा त्रिकाली उपादान कारण और मुंह खुला उपादेय / इसको समझने से क्या-क्या लाभ हुआ?
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy