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________________ ( १३४ ) कर्म के क्षयोपशम से ज्ञान का उघाड़ होता है। (१४) मै हंसा; (१५) मै बोला, (१६) मै चला, (१७) मैंने कपड़े पहिने; (१८) मैंने पलग बनाया; (१६) मैंने हलवा बनाया; (२०) मैं उठा, आदि वाक्यो में निमित्त की परिभाषा लगाकर बताओ? __उत्तर-(१) स्त्री स्वय स्वत. रोटी रूप परिणमित ना हो । परन्तु रोटी की उत्पत्ति मे अनुकूल होने का जिस पर (स्त्री पर) आरोप आ सके । उस पदार्थ को (स्त्री को) निमित्त कारण कहते है। इसी प्रकार बाकी के १६ वाक्यो पर प्रश्न १८ के अनुसार लगाकर बताओ। प्रश्न २१-"गुरु उपदेश निमित्त बिन, उपादान बल हान । ज्यो नर दूजे पॉव बिन, चलवे को आधीन ॥" अर्थ-गुरु के उपदेश रूप निमित्त बिना उपादान (शिष्यादि) बलहीन है, (क्योकि) दूसरे पॉव के विना मनुष्य चल नही सकता है ? [यह मान्यता बरावर नही है ? ऐसा शिष्य का प्रश्न है।] उत्तर--यह मान्यता बराबर नही है-ऐसा बतलाने के लिये श्री गुरु दोहे से उत्तर देते है कि "ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिव मग धार । उपादान निहचै जहाँ, तहाँ निमित्त व्योहार ॥" अर्थ-सम्यग्दर्शन-ज्ञानरूप नेत्र और स्थिरता रूप चरण (लीनता रूप क्रिया) यह दोनो मिलकर मोक्षमार्ग जानो। जहाँ उपादानरूप निश्चयकारण होता है वहाँ निमित्तरूप व्यवहार कारण होता ही है। भावार्थ-उपादान तो निश्चय अर्थात सच्चा कारण है, निमित्त तो मात्र व्यवहार अर्थात् उपचार कारण है, सच्चा कारण नहीं है, इसीलिये तो उसे अकारणवत (अहेतुवत) कहा है उसे उपचार (आरोपित) कारण इसलिये कहा है कि वह उपादान का कुछ कार्य करता-कराता नही है, तथापि कार्य के समय उस पर अनुक लता का आरोप आता है, इस कारण उसे उपचार मात्र कहा है। सम्यग्ज्ञान और चारित्र रूप लीनता को मोक्षमार्ग जानो-ऐसा कहा, उसमे
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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