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________________ ( १३२ ) देते हैं या प्रभाव आदि डाल सकते हैं ऐसा नही समझना, क्योकि दोनो पदार्थों का ( उपादान - निमित्त का) एक-दूसरे मे अभाव है। प्रेरक निमित्त उपादान को प्रेरणा नही करता । प्रश्न १२ – उदासीन निमित्त किसे कहते हैं ? उत्तर- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और कालादि निष्क्रिय ( गमन क्रिया रहित ) या राग रहित द्रव्यो को उदासीन निमित्त कहते है । ? प्रश्न १३ - जब निमित्त उपादान में कुछ करता ही नही है । तब प्रेरक निमित्त और उदासीन निमित्त ऐसा भेद क्यों डाला है। उत्तर--निमित्तो के उपभेद बताने के लिए किन्ही निमित्तो को प्रेरक और किन्ही को उदासीन कहा जाता है । किन्तु सर्व प्रकार के निमित्त उपादान के लिए तो “धर्मास्तिकायवत उदासीन ही हैं ।" निमित्त के भिन्न-भिन्न प्रकारो का ज्ञान कराने के लिए ही उसके यह दो भेद किये गये हैं । प्रश्न १४ – निमित्त के दूसरे प्रकार से कितने भेव हैं ? ? उत्तर - दो भेद है । सद्भावरूप निमित्त और अभावरूप निमित्त । प्रश्न १५ - चारो प्रकार के निमित्तो मे क्या अन्तर है उत्तर - प्रेरक और उदासीन निमित्त सद्भावरूप व अभावरूप दोनों प्रकार के निमित्त होते हैं । प्रश्न १६ – सद्भावरूप निमित्त और अभावरूप निमित्त से क्या तात्पर्य है ? उत्तर – सद्भावरूप निमित्त अस्तिरूप है और अभावरूप निमित्त नास्तिरूप है । प्रश्न १७ - सर्व प्रकार के निमित्त धर्मास्तिकायवत् ही हैं ऐसा fe शास्त्र में कहाँ आया है ? उत्तर- " नाज्ञो विज्ञत्वमायाति, विज्ञो नाज्ञत्वमृच्छति । निमित्तमात्र मन्यस्तु गते धर्मास्तिकायवत्" ॥३५॥
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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