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________________ ( १२० ) क्षणिक उपादान कारण" से ही होते हैं तो लोग दूसरे कारणों की चर्चा क्यों करते हैं ? उत्तर - जैसे -- किमी का माल चोरी करने से डढे पडते है, जेल जाना पडता है, वैसे ही जो कार्य मे दूसरे कारणो की बात में पागल हो रहे है उन्हे चारो गतियो मे घूम कर निगोद में जाना अच्छा लगता है । इसलिए दूसरे कारणो की चर्चा करते है । प्रश्न २२८ - जो व्यवहार कारणो को सच्चाकारण मानते हैं उन जीवो को भगवान ने किन-किन नामो से शास्त्री मे सम्वोधन किया है ? उत्तर - ( १ ) जो व्यवहार कारणो को सच्चा कारण मानते हैं "उनका सुलटना दुनिवार हे ओर यह उनका मोह-अज्ञान- अधकार है। [ समयसार कला ५५ ] ( २ ) वह पद-पद पर धोखा खाता है। [ प्रवचनसार गा० ५५ ] ( ३ ) वह भगवान की वाणी सुनने लायक नही है । [ पुरुषार्थ सिद्धउपाय गा० ६ ] ( ४ ) वह मिथ्यादृष्टि है । [समयसार ३२४ से ३२७ के हेडिंग मे ] ( ५ ) उसका फल ससार है [ समयसार गा० ११ के भावार्थ मे ] (६) एक नय का अवलम्बन लेने वाला उपदेश के योग्य नही । [ नियमसार गा० १६ की टीका से ] (७) उसके सब धर्म के अग मिथ्यात्व भाव को प्राप्त होते हैं और अकार्यकारी अर्थात् अनर्थकारी कहा है । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २१३] (८) हरामजादीपना कहा है [ आत्मवलोकन पृष्ट १४३ ] प्रश्न २२६ - उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान से कार्य की उत्पत्ति होती है क्या यह निरपेक्ष है ? उत्तर - हॉ, वस्तु स्वय पर की अपेक्षा नही रखती इसलिए निरपेक्ष है और अपनी अपेक्षा रखती है इसलिए सापेक्ष है। इसलिए सबसे प्रथम पात्र जीवो को निरपेक्ष सिद्धि करनी चाहिये। की बात आती है । फिर सापेक्षता
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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