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________________ ( ११० ) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ज्ञान हुआ है गुरु से नही, तव "कारणानुविधायिनी कार्याणि" को माना। प्रश्न १८१-क्या ज्ञान कार्य और इन्द्रियाँ कारण, कारणान विधायोनि कार्याणि को माना ? उत्तर-नहीं माना, क्योकि आत्ना के ज्ञान गुण मे से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ज्ञान हुआ है इन्द्रियो से नही, तब कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना। प्रश्न १८२-क्या ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम कारण और ज्ञान कार्य, कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना ? उत्तर-नही माना, क्योकि आत्मा के ज्ञान गुण मे से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादानकार का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ज्ञान हुआ है ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के कारण नही, तब कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना। प्रश्न १८३-क्या शुभभाव कारण और ज्ञान कार्य, कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना ? उत्तर-नही माना, क्योकि आत्मा के ज्ञान गुण मे से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादानकारण का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ज्ञान हुआ शुभभाव के कारण नहीकारणानुविधायीनि कार्याणि को माना । प्रश्न १८४–क्या श्रद्धा गुण कारण और ज्ञान कार्य, कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना ? उत्तर-नही माना, क्योकि आत्मा के ज्ञान गुण मे से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ज्ञान हुआ श्रद्धा गुण के कारण नहीं-तब कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना ।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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