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________________ ( ९४ ) प्रश्न १०३ - चारित्रगुण में अनादिकाल से पर्यायो का प्रवाह क्यों चला आ रहा है ? उत्तर- प्रत्येक द्रव्य व गुण अनादिअनन्त धौव्य रहता हुआ एक पर्याय का व्यय, दूसरी पर्याय का उत्पाद एक ही समय मे स्वय स्वत अपने परिणमन स्वभाव के कारण करता रहा है, कर रहा है और भविष्य में करता रहेगा - ऐसा वस्तुस्वरूप है । इसी कारण अनादिकाल से चारित्र गुण मे पर्यायों का प्रवाह चला आ रहा है। प्रश्न १०४ - अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नश्वर क्षणिक उपादानकारण और राग उपादेय । इसको मानने से क्या लाभ हुआ ? उत्तर- ( १ ) भूत-भविष्यत् की पर्यायों से दृष्टि हट गई। (२) चारित्र गुण त्रिकाली उपादान कारण था, वह भी अब व्यवहार कारण हो गया । (३) अब यहाँ पर राग के लिए मात्र अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण की तरफ देखना रहा । यह -लाभ हुआ । प्रश्न १०५ – कोई चतुर फिर प्रश्न करता है कि अभाव में से भाव की उत्पत्ति नहीं होती है और पर्याय में से पर्याय नहीं आती है । ऐसा जिनवाणी में कहा है। फिर यह मानना कि अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण और राग उपादेय है यह आपकी बात झूठी साबित होती है ? उत्तर - अरे भाई---अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नही होती है और पर्याय मे से पर्याय नही आती है यह बात जिनवाणी को बिल्कुल ठीक है । परन्तु हमने तो कार्य से पहिले कौनसी पर्याय होती है । उसकी अपेक्षा राग का अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर को क्षणिक उपादान कारण कहा है परन्तु अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नो नम्बर भी राग का सच्चा उपादान कारण नही है । प्रश्न १०६ - अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर राग का
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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