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________________ ( ६१ ) प्र० ५३. क्या शुभ भावों से निगोद की प्राप्ति होती है ? उ० नहीं ! शुभ भाव पुण्यबंध का कारण है । और शुभ भाव से मुझे मोक्ष मिलेगा, ऐसा माने तो निगोद की प्राप्ति होती है । प्र० ५४. विश्व में ऐसा कौन सा द्रव्य है जिसमें गुरण न हो ? उ० जिसमें गुण न हो ऐसा द्रव्य विश्व में है ही नहीं । प्र० ५५. गुणों को कौन नहीं मानता ? उ० श्वेताम्बर । है ? प्र० ५६. द्रव्य गुणा वेद रूप हैं या प्रद भेद रूप भी हैं और प्रभेद रूप भी हैं । प्र० ५७. द्रव्य गुणा भेद रूप कैसे हैं ? उ उ० प्र० ५८. द्रव्य गुण प्रभेद रूप कैसे हैं ? प्रदेशों की ग्रांक्षा, क्षेत्र की b2 s उ० सज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजन की अपेक्षा भेद रूप है । है । अपेक्षा और काल की अपेक्षा प्रभेद प्र० ५६. द्रव्य, गुण, 'संना' अपेक्षा भेद रूप कैसे है ? उज् उ. एक नाम द्रव्य है दूसरे नाम गुग्गा हैं । यह संज्ञा भेद रूप है । प्र० ६०. द्रव्य, गुण, संख्या अपेक्षा भेद रूप कैसे है ? द्रव्य एक है गुगण अनेक हैं यह संख्या भेद रूप है । प्र० ६१. द्रव्य गुण लक्षरण की अपेक्षा भेद रूप कैसे हैं ? उ० (१) गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं । (२) द्रव्य के सम्पूर्ण भागों में और सम्पूर्ण अवस्थामों में रहता है उसको गुण कहते हैं । यह लक्षण भेद रूप है । प्र. ६२. छह द्रव्यों को दो-दो भेद रूप में बांटो ।
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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