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________________ ( १६६ ) गुण प्रत्येक द्रव्य का पृथक २ माकार बनता है उसको नहीं माना । प्र ० ३. प्रदेशत्व गुण को न मानने से क्या नुकसान रहा ? उ. A मैंन अनंत द्रव्यों के एक एक देशी प्रकार को अपना प्राकार माना । उनका अपना आकार मानना, यह मिथ्यात्व है इसका फल चारों गतियों में घूमकर निगोद का पात्र है । То ४. अनंत पुद्गलों के सर की खोटी मान्यता कैसे छूटे तो हमने प्रदेशत्व गुण को माना ? उ० मैं संख्या देशी एक श्रावार वाला हूँ इन पुद्गलों के आकार से मेरा किसी भी प्रकार का कोई संवन्ध नहीं है ऐसा जानकर अपने असंख्यात प्रदेशी प्रभेद एक आकार का आश्रय ले तो प्रदेशत्व गुण को माना कहलाया । O ५. ग्रपने प्रसंख्यान प्रदेशी प्रभेद एक का आश्रय लेने से क्या होता है ? सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र को प्राप्ति होकर मोक्ष का पथिक बन जाता है | उ० Яо ६. तो क्या अनादि से इसने पुद्गलों के आकार को अपना प्राकार माना और प्रदेशत्व गुण का रहस्य नहीं जाना, इसीलिए संसार में घूमता है ? हां, इस जीव ने अनादि से एक २ समय करके अपने आकार का निरादर किया और पर के आकार को अपना माना इसलिये चारों उ०
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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