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________________ (१६२ ) उ. कुम्हार ने घड़ा बनाया = कुम्हार घड़े रूप हो जावे अर्थात् कुम्हार का प्राकार घड़े रूप हो जावे तो कहा जा सकता है कि कुम्हार ने घड़ा बनाया। प्र. कुम्हार ने घड़ा बनाया ? उ. प्रदेशत्व गुण को नहीं माना क्योंकि घड़े का प्राकार पृथक है प्रात्मा का प्राकार पृथक ऐसा न मानकर एक माना तो प्रदेशत्व गुण को नहीं माना। प्र० कुम्हार ने घड़ा बनाया इसमें प्रदेशत्व गुण न मानने से क्या हुआ ? २. घड़ा अनन्त द्रव्यों का पिण्ड है प्रनन्त द्रव्यों का कर्ता बन गया। मिथ्यात्व का महान पाप हुआ । प्र. कुम्हार ने घड़ा बनाया इस में मिथ्यात्व का प्रभाव कैसे हो ? उ. मैं प्रात्मा असंख्यात प्रदेशी आकार वाला हूँ। घड़े का प्राकार तो अनन्त पुद्गलों का एक २ प्रदेशी आकार है मेरा उससे सम्बन्ध नही है, तब प्रदेशत्व गुण को माना। प्र. प्रदेशत्व गुण को मानने से क्या लाभ रहा ? उ. अपने प्रसंख्यात प्रदेशी स्वभाव का माश्रय लेकर धर्म की प्राप्ति यह इसका फल है। इसी प्रकार | वाक्यों को लगायो । प्र० २३. पात्मा में कितने प्रदेशत्व गुण हैं ?
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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