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________________ ( १५६ ) जितना काल द्रव्य का है उतना ही काल प्रगुरुलघुत्व गुण का है क्योंकि गुरुलघुत्व गुण द्रव्य की सम्पूर्ण अवस्था त्रों में त्रिकाल पाया जाता है । ० ३०. एक परमाणु के अगुरुलघुत्व गुण काक्षेत्र कितना बड़ा है ? एक प्रदेशी है । ४० ० ३१. प्रकाश के प्रगुरुलघुत्व गुण का क्षेत्र कितना बड़ा है ? अनन्त प्रदेशी है । ० • ३२. धर्मादि द्रश्यों में भी अगुरुलघुत्व गुरण है ? हां है, क्योंकि धर्मादि द्रव्य भी द्रव्य हैं और अगुरुलघुत्व गुण प्रत्येक द्रव्य का सामान्य गुण है इसलिये धर्मादि में भी है । प्र. ३३. संसार दशा में गुण कम हों, सिद्ध दगा होने पर ज्यादा हो जावें क्या ऐसा होता है ? कभी नहीं । ( १ ) क्योंकि द्रव्य में प्रगुरुलघुत्व गुण होने से गुणों की संख्या और शक्ति कम ज्यादा नहीं होती है । (२) गुरण सर्व अवस्थाओं में जितने हैं उतने ही रहते हैं । प्र० ३४. प्रघुरुलघुत्व गुरण क्या बताता है ? შე यह गुण गुरुलघु भी, सदा रखता है महत्ता महा । गुण द्रव्य को पररूप, यह होने न देता है श्रहा । निज गुरण- पर्यय सर्व ही, रहते सतत् निजभाव में । कर्ता न हर्ता अन्य कोई, यो लखो स्व-स्वभाव में ।
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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