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________________ ( १५२ ) होता है। (II) जब स्वयतुष्टय भगवान की प्रात्मा का अलग है और दूसरे द्रव्यों का अलग है तो आदिनाथ भगवान ने किया तो अगुप्लघुस्व गुण को नहीं माना। (ii) भादिनाथ भगवान कायम रहते हुये अपनी प्रयोजनभूत दिया करते हुये निरन्तर बदलते हैं और दूसरे जीव अपनी क्रिया करते हुये निरन्तर पदलते हैं; दोनों का कार्य अपमे २ अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व गुण से हो रहा है उसके बदले आदिनाथ भगवान ने किया तो भगवान के अस्तित्व, बस्तुत्व, द्रव्यत्व गृग को उड़ा दिया और दूसरे जीवों के अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व गुण को भी उड़ा दिया। प्र. तो क्या करें ? उ० प्रादिनाथ भगवान ने दूसरे जीवों का भला किया ही नहीं तब दोनों की सत्ता भिन्न २ मानी। अग रूलघुत्व गण को माना। प्रत्येक द्रव्य के अस्तित्व, घस्तुत्व, द्रव्यत्व गण को माना। इसी प्रकार ११ वाक्यों में लपायो । उ० प्र० १६. एक परमाणु दूसरे परमारपु में करता है वा ? (१) एक परमाणु का दूसरे परमाणु से द्रव्य क्षेत्र काल भाव पृथक २ है। (२) एक पपमाणु दूसरे परमाणु का करता है अगरूलघुत्व
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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