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________________ ( १५० ) (३) ब्राह्मी के तेल से ज्ञान बढ़ता है - अगुरुलघुत्व गुण को नहीं माना । ज्ञान ज्ञान से बढ़ता है, तेल से नहीं तब अगुरूलघुत्व को माना है । (४) दूध में दही मिलाने से पूरा दही जमता है अगुरुलघुत्व गुण को नहीं माना । दूध श्रपनी योग्यता से जमता है, दही से नहीं तब गुरूलघुत्व को माना । (५) शास्त्र से ज्ञान होता है - अगुरुलघुत्व गुण को नहीं माना । ज्ञान ज्ञान से होता है, शास्त्र से नहीं तब प्रगुरुलघुत्व गुण को माना । उ. प्र. १२. जीव पुद्गल में करता है ऐसा माने तो क्या २ दोष प्राते हैं ? (१) नीव पुद्गल का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव पृथक २ हैं । जब द्रव्य में रहने वाले अनंत गुरण प्रापस में कुछ नहीं करते तब पृथक २ द्रव्य करें यह बात झूठी है । (२) ऐसी मान्यता वाले ने अगुरुलघुत्व गुरण को नहीं माना । (३) जीव अपना अस्तित्व रखता हुआ अपना प्रयोजनभूत कार्य करता हुआ निरन्तर बदलता है तब दोनों के (जीव पुदुगल के ) प्रस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व गुरण को नहीं माना । प्र० १३. एक द्रव्य में अनंत २ गुण हैं उनका द्रव्य क्षेत्र काल एक ही है तब एक गुरण दूसरे गुरण में क्यों नहीं कर सकता ।
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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