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________________ उ० ( १३४ ) प्र० में हैं आत्मा इसके बदले मैं मनुष्य ऐसा माने तो क्या हो ? उ० उसने प्रमेयत्व गुण को नहीं माना । प्र. मैं मनुष्य हूं ऐसा मानने से क्या नुकसान हुआ ? उ० कार्मरण शरीर, तैजस शरीर, औदारिक शरीर आदि का कर्ता बन गया इसका फल निगोद है । प्रo १७. दिगम्बर धर्मी कौन हैं ? उनका कार्य क्या है ? ज्ञानी दिगम्बर धर्मी है उसका कार्य ज्ञाता दृष्टा है । प्र० क्या करे तो निगोद का प्रभाव हो ? उ० मैं आत्मा हूं कार्मारण शरीर, तैजस शरीर, प्रौदारिक शरीर, मन, वाणी यह सब मेरे ज्ञान का ज्ञेय हैं ऐसा जाने माने तब प्रमेयत्व गुण को माना और सब शरीर में एक २ परमाणु अपनी २ मर्यादा में परिणमन कर रहा है उसमें कर्ता बुद्धि का अभाव होकर मोक्ष का पथिक बन गया । इसी प्रकार बाकी चार प्रश्नों का उत्तर दो । उ० प्र० १८. जो सप्तव्यसन का सेवन करते हैं हिंसादि झूठ बोलते हैं वह अपने को दिगम्बर धर्मी कहते हैं क्या यह ठीक है ? वह सब दिगम्बर धर्मी नहीं है और चारों गतियों में घूमते हुए निगोदगामी हैं। चारों गति के भक्त हैं पंचम गति के भक्त नहीं हैं । प्र० १६. विश्व के सम्पूर्ण पदार्थों के साथ श्रात्मा का कैसा संबंध है ?
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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