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________________ ( १३१ ) उसने कहा भाई तुम तो जैन हो । अरहंत भगवान सिद्ध भगवान तो इस बात को जानते हैं और अवधि, मन:पर्यय ज्ञानी भी बतला सकते हैं तब तुम कैसे कहते हो इस बात को कोई नहीं जानता । उस दिन से उसने यह बेईमानी का कार्य छोड़ दिया क्योंकि उसने प्रमेयत्व गुरण का रहस्य जान लिया । प्र० १३. (१) मैं जुग्राँ खेलता हूँ कोई नहीं जानता है; (२) मैं दूसरों की मां बहिनों को छेड़ता हूँ इसे कोई नहीं जनता; (३) मैं इन्कम टैक्स की चोरी करता हूँ कोई नहीं जानता, (५) मैं सिगरेट पीता हूँ किसी को क्या पता है; (६) मैं शराब पीता हूँ लेकिन किसी को पता नहीं, (७) मैं वेश्या के यहां जाता हूँ परन्तु कोई देखता नहीं है; (८) मेरे घर पर दूसरों की स्त्रियां आती है मैं उनसे मनोरंजन करता हूँ कोई नहीं जानता है; (६) मैं हिंसा झूठ चोरी करता हूँ किसी को पता नहीं चलता; (१०) मैं नकल करता हूँ किसी को पता नहीं चलता; ( ११ ) मैं व्यापार में सबको उल्लू बना देता हूँ कोई नहीं जानता है; (१२) मैं ऐसी चार सौ बीस करता हूँ सब दंग रह जाते हैं; (१३) मैंने अलेक्सन में तमाम बोट अपनी पेटी में डाल दिये किसी ने देखा ही नहीं;
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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