SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन - शिलालेख -संग्रह ८८ मथुरा - संस्कृत -- भग्न | [ सं० २९९ ] १. नमस्- सर्वसिद्धाना अरहन्ताना । महाराजस्य राजातिराजस्य संच्छरशते द [ - ] [ तिये नव (?) -नवत्यधिके । ] २. २०० ९० ९ (१) हेमन्तमासे २ दिवसे १ आरहातो महावीरस्य प्रातिमा ३. .... स्य ओखारिकाये धितु उझतिकाये च ओखाये श्राविका भगिनिय [] ४. ........ शरिकस्य शिवदिनास्य च एतैः आराहातायनाने स्थापित [] S ... -- देवकुलं च । ५... अनुवाद - सब सिद्धों और अर्हन्तोंको नमस्कार हो । महाराज और राजा तिराजके ( ९९ से अधिक ) दूसरी शताब्दिमे, २९९ ( ? ), शीतऋतुके दूसरे महीने के पहले दिन - भगवान महावीरकी प्रतिमा अर्हन्मन्दिर में के द्वारा तथा.. की पुत्री, ओखरिकाफी उज्झतिका द्वारा, ... श्राविका भगिनी जोखाके द्वारा, तथा शिरिक और शिवदिना इनके द्वारा स्थापित की गई साथमें एक जिनमन्दिर भी । [G. Buhler, J RAS, 1896, p. 578-581.] ૮૦ ... .. मथुरा - संस्कृत - भन्न [ गुप्तकाल ? वर्ष ५७ ] संवत्सरे सप्तपञ्चाश ५० ७ हेमन्धत्रिती.... १ --- [द] से त्रयोदशे अ-पूर्वायां.... १ 'हेमन्त' और 'तृतीय' या 'तृतीये' पढ़ो।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy