SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मथुराके लेख ८० मथुरा-प्राकृत-भन्न। [विना कालनिर्देशका] पं. १. [ सि] द नमो अरहताण"वारणे गणे अयहाट्टि [ये ] २. कुले वजनागरिया शाखाया अर्यशिरिकिये मंभो.......३ अनुवाद-सिद्धि हो । अर्हन्तोंको नमस्कार । [सिद्धोंको नमस्कार ] । वारण गण, अय हाहिय (मार्य हालीय)कुल, बजनागरि (वज्रनागरी) शाखा, भर्य-शिरिकिय संभोगके...... [El, I, XLIV, n° 34 ] मथुरा-प्राकृत । [विना कालनिर्देशका] पं. १. [ते-रुसनंदिकस पुत्रेन नंदिघोषन ते वणिकेन अ.. त अले....." २. णानं मंदिरे [आ] यागपटा प्रतियापित [1].........." अनुवाद-ते-रूस (1)-नंदिकके पुत्र, तेवणिक (त्रैवर्णिक) नंदिघोषके द्वारा मायागपट ..... के मन्दिरमें स्थापित की गई। [El, I, XLIV, n° 35] मथुरा-प्राकृत। [विना कालनिर्देशका अ. ... भगवतो उसमस वारणे गणे नाडिके कुले .... .... खा [य] ..." १ पढ़ो 'नमो सिद्धान। २ संभवतः 'होळिये। ३ पड़ो "संभोगे'।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy