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________________ चलिका लेख ३०० चत्रदहळ्ळि - कन्नड़ [ विक्रम वर्ष ५८ = ११३३ ई० ] [चत्रदहकिकमें, अमृतेश्वर मन्दिरके सामनेके वीरफलके ऊपर ] स्वस्ति श्रीमतु विक्रम संवत्सरद ५८ परिधावि-संवत्सरदाखयिज-च ५....... श्रीमतु मूलसंघद देसिंग- गणद श्री - माघणन्दिभट्टारक- देवर गुडं गङ्गवलिय दास- गावुण्डन मगं बोप्पयं समाधिविधियि मुडिपि स्वर्गस्थनादनु ॥ ४७९ [ स्वस्ति । ( उक्त मितिको ), मूलसंघ और देसिंग- गणके माधनन्दिभट्टारक- देवके एक गृहस्थ- शिष्य, - गङ्गवल्लिय दास गावुण्डके पुत्र बोप्पय, समाधि-विधि मरण कर, स्वर्गको गये । ] [EC, VIII, Sorab tl., n° 97.] ३०१ हळेबीड -- संस्कृत और कपड़ [ वर्ष प्रमादिन्, ११३३ ई० (लू० राइस ) ] [ हळेबीडसे लगी हुई बस्तिद्दळ्ळि में, पार्श्वनाथ बस्तिके बाहरकी दीवालमें एक पाषाणपर ] श्रीमत्परम गंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ जयतु जगति नित्यं जैनसंधोदयार्कः प्रभवतु जिनयोगीवातपद्माकर श्रीः । समुदयतु च सम्यग्दर्शन -ज्ञान-वृत्तप्रकटित-गुण- भास्वद्-भव्य-चक्रानुरागः ॥ जगचितयवल्लभः श्रियमपण्यवाग्दुर्लभः ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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