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________________ मथुराके लेख ३४ मथुरा - प्राकृत । [हुविष्क सं. २२ ] [ सि ] द्धं सं २० (4) [२] प्रिं २ दि ७ वर्धमानस्य प्रतिमा वारणात गणातो पेतिवामि[क] · ... अनुवाद - सिद्धि प्राप्त हो । २२ में वर्षकी ग्रीष्मके दूसरे महीनेके ७ वें दिन, वारणा गण, पेतिवामिक [ कुल ] की तरफसे वर्धमानकी प्रतिमा [ प्रतिष्ठापित की गई ] । ग्र ग्रह थे । यह शाखाके थे । [ E], 1, n° XLIII, n° 20] —— ३५ मथुरा - प्राकृत । [ हुबिक वर्ष २५ ] अ. १. सवत्सरे पचविशे हेमंतम [से ] त्रितिये दिवसे वीशे अस्मि क्षुणे व. १. कोड्डियतो गणतो ब्र[ह्म] दासिकतो कुलतो उचेनागरितो शाखा अबलत्रतस्य शिप सधि २९ २. 'स्य शिपिनि ग्रह f.... वतन [ ना ] दिअ [रि ] त जभ[क] स्य वधु जयभट्टस्य कुंटूबिनीय रयगिनिये [वु ] सुय [ 1 ] अनुवाद - २५ वें वर्षकी शीतऋतुके तीसरे महीनेके १२ वै दिनके समय रयगिनिने जो नान्दिगिरि ( ? ) के जभककी बहू थी, एक वुसुय - की आशासे समर्पित की । रयगिनि जयभट्टकी पत्नी थी । afrकी शिष्या थी । सधि अर्थ्य बलवत ( बलनात ) के शिष्य बलत्रात कोट्टिय गण, ब्रह्मदासिक कुल (और) उच्च नागरी [El, 1, XLIII, a 5 ] १ यह एक प्रकारकी या तो प्रतिमा है या कोई दान है ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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