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________________ ધાર जैन - शिलालेख संग्रह [ बायें हाथकी ओरके शिलालेखमें करीब १७-१७ अक्षरोंवाली ३७ पंक्तियाँ हैं। इसमें एक दानका उल्लेख है जो मादिगवुण्ड और दूसरे गाँव-प्रमुखों द्वारा शुभकृत् संवत्सरमें, चालुक्य विक्रमके ४५ वें वर्ष, किरिय बक्कापुरके जिनमन्दिरको किया गया था । ] [ IA, IV, 205, n° 7, & ] २७३ मत्तावार - कन्नड़ [ बिना कालनिर्देशका पर संभवतः लगभग ११२० ई०] [ मत्तावार में, पार्श्वनाथ-बस्तिके प्राङ्गणमें एक पाषाणपर ] मरुळहळि -जकवे हट्टिदेडे गे....गन्ति मत्त्वूरद बसदि तपसु माडि सिद्धियादळु अब्बेय माजकन मग मारे[य] कल निल्लिसिद [ मरुळहळळिके जकन्येके द्वारा प्रेषित गे...गन्तिने मत्तबूरकी बसदिमें तपश्चरण करके सिद्धि प्राप्त की । अब्बेय माजकके पुत्र मारेपने मह पाषाण स्थापित किया । ] [EC, VI, Chikmagalur tl. n° 52] २७४ सुकदरे - संस्कृत तथा कन्नड़ भन्न [ काल लुप्त, पर लगभग ११२० ई० ] [ सुकदरे ( होणकेरी परगना ), लक्ष्म्म मन्दिरके सामने पड़े हुए पाषाणपर ] ******** ....... "कल्पवृक्ष -सदृशं कीर्त्त्यङ्गनावल्लभम् "पुण्याकरम् ॥ ..... ....... 1 श्री" श्रीमत्परम गंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ ........
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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