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________________ जैन शिलालेख संग्रह अनुवाद - सिद्धि हो । १९ वे वर्षकी वर्षाऋतुके चौथे महीने में, वाश्वक अ बलदिन ( बलदत्त ) के शिष्य वाचक अर्थ्य मातृदिनके आदेश से भगवान शान्तिनाथकी प्रतिमा ले की तरफसे अर्पित की गई । यह अर्पण करनेवाली स्त्री सुचिल ( शुचिल ) की धर्मपत्नी थी और वह कोहि गण, ठानीय कुल, श्रीगृह सम्भोग तथा अर्थ बेरि ( आर्य-वज्र ) शाखाकी थी । सर्व लोकोंमें उत्तम ऐसे अर्हतोंको नमस्कार हो [ El, 1, n° XLIII, n° 31 २६ ३० मथुरा--प्राकृत । [ कनिष्क वर्ष २० ] अ १. सिद्ध स [ २० ] गृमा- दि. १० ५ कोट्टियातो गणतो [3] णियातो कुलनो बेरितो राखतो शिरिकानो १. [ संभो ] गातो वाचकस्य असघसिहस्य निर्वर्त्तना दाति"मति लस्य २. लस्य कुठुविणिये जयवालस्य देवदासस्य नागादिनस्य च नागदिनय च मातु स. १. श्राविका दि २. [ ना ] ये दानं ॥ ३. वर्द्धमानप्र ४. तिम | अनुवाद - सिद्धि हो । २० वे वर्षकी ग्रीष्मऋतुके १ ले महीने के १५ वें दिन, कोट्टियगण, ठानीय कुल, बेरि ( वज्री ) शाखा और शिरिक सम्भोगके वाचक अर्थ्य सघसिह ( आर्य सङ्घसिंह ) के आदेश से श्राविका दीना ( दिना) की तरफसे वर्धमानकी प्रतिमा [ अर्पित की गई ] । यह
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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