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________________ उदयगिरिका लेख ३६३ [जिन-शासनकी प्रशंसा । जिस समय, (चालुक्य उपाधियों सहित), त्रिभुवनमल्ल-देवका राज्य चारों ओर प्रवर्द्धमान था और तपादपोपजीबी मने-वेगंडे दण्डनायक अनन्तपालस्य, गजगण्ड ६००, बनवासे १२०००, और ससार्द्ध-लक्ष (देश) अच्छ-परायको प्राप्त करके उनके ऊपर शासन कर रहा था, तत्पादपनोपजीवी, जिस समय (भनेक उपाधियों सहित) गोविन्दरस बनवासे १२००० तथा मेल्पट्टे 'बड्ड-रावुळ'की शान्तिसे रक्षा कर रहा था;-उसका पुत्र (प्रशंसासहित) सोम या सोवरस था, जिसकी पत्नी सोमाम्बिका थी। उनकी वीराम्बिका और उदयाम्बिका, ये दो पुत्री थीं। इन दोनोंने एक जिनमन्दिर बनवाया। मम्ब जूज-कुमारके, जिसे कुमार गजकेसरी भी कहते थे, पराक्रमकी प्रशंसा । उसका दामाद,... (लेख बहुत घिसा हुमा है)। [EC, VII, Shikarpur tl., n° 311] २४४ गुब्बी-कन्नड़ [विना कालनिर्देशका] (देखो, जै०शि० सं०, प्र. भाग) . २४५ उदयगिरि (कटकके पास)-संस्कृत [लगभग ईसाकी ११ वीं शताब्दि ] उद्योतकेसरीके समयका शिलालेख नोट:-इस शिलालेखके लेखका कुछ पता नहीं है। इसका उल्लेख मात्र टी. ब्लॉक (T. Bloch) के Archaeological Survey of India, Annual Report 1902-1903, पृ० ४० के उल्लेख परसे [उद्योतकेसरीके समयका यह शिलालेख, जो कि है वी शताब्दिमा है, शुभचन्द्र के कुल और गणका उल्लेख करता है। शुभचन्द्र के शिष्यका
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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