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________________ ३६० जैन - शिलालेख संग्रह श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वाद ामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ स्वस्ति समस्त भुवनाश्रयं श्री - पृथ्वी वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम-भट्टारक सत्याश्रय-कुळतिळक चालुक्याभरण श्रीमत् त्रिभुवनमल्ल देवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्द्धमानमाचन्द्रार्कतारम्बरं सलुतमिरे ॥ तत्पादपद्मोपजीवि ॥ स्वस्ति समधिगत- पश्च-महा-शब्द महासामन्ताधिपति महा-प्रचण्ड - दण्डनायक विबुधवर - दायक सुजन - प्रसन्न नुडिदु मत्तेनं गोत्र-पवित्र पराङ्गना-पुत्र " नामादि-समस्त-प्रशस्ति-सहितं श्री यकननन्तपाळय्यं गजगण्ड- अरुनूरुमं सप्तार्द्ध - लक्ष्म (क्ष) यच्छ-पन्नाय मुमं पडेदु तत्पादपद्मोपजीवि ॥ • सोत्तुङ्गनय्यन - सिङ्ग मने वेगडे-दण्डना वेगडे मुम बनवासे " सुख-संकथा - विनोददि ••• ... श्री-वनिता कुच -सम्भृत- । पीवर वक्षस्थळं लसद्गुण-मणी...। 'सकळ - विभु (बु) ध- जनता" आ-समस्त-गुण-गणाभरणनु विबुध-जन- पर जगद्-वळय... वनुं रण-रङ्ग भैरवनं सकळ-सु-कवि-जन-क वीर-लक्ष्मी-विळा सनुमनन्तपाळ-प्रसादनुदिताधिकार-लक्ष्मी-विळासनुं ..... " [गो] विन्दरसं वनवासे-पनिच्छसिरमुमं मेल्पट्टेय वड्ड राबुळमु.... .....नोददिं प्रतिपाळिसुत्तमिरे ॥ *****.... श्रियं निज- भुज-बळदिम् । दायाद- बळ .........] 'विळसित
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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