SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हट्टणका लेख ३२१ [जिनशासनकी प्रशंसा । जिस समय, ( उन्हीं चालुक्य पदों सहित ) भूलोकमल सोमेश्वर-देवका विजयी राज्य प्रवर्द्धमान थाः त्रिभुवनमल एरेय - होय्सळ-देव और एचल-देवीके कुलमें उत्पन्न, स्वस्ति । जब ( अपने पदों सहित ) वीर बल्लाल देव पृथ्वीका शासन कर रहे थे: तत्पादपद्मोपजीवी, महा सामन्त गण्डरादित्य और हुग्गियन्त्रे नाय कित्तिके सामन्त सुब्वय, सातथ्य, और बूवथ्य उत्पन्न हुए थे 1 महा सामन्त माचय्यकी प्रशंसा । उसकी कुछ उपाधियाँ। माचय्यकी उत्पत्तिका वर्णन । जिस समय सामन्त बल्लि देव ( माचय्य ) अपनी दोनों स्त्रियों और चार लड़कों सहित शान्ति और सुखसे राज्य कर रहा था;सासल बम्मथ्य और उसके दो लड़कों माणिक्य और जाकि-सेट्टिका उल्लेख । माचि-सेट्टि और उसके लड़के कालि-सेहि, फिर उसके लड़के बम्मय्यका वर्णन | माणिक नन्दि देवका उल्लेख । ( उक्त मिति को ) नखर जिनालय - के लिये (उक्त ) भूमियाँ, दस गट्ठोंका दाम, एक कोल्हू दानमें दिये गये थे । श्री-मूल संघ, देशिय गण, पोस्तक- गच्छ, तथा कोण्डकुन्दान्वयके नागचन्द्र- चान्द्रायणदेवके शिष्य रुणिकच्छगोण्डिदेव थे; उनकी पत्नी बोपवे, बच्चे काचवे, मलवे, मादवे, माचवे और बालचन्द्रदेव थे । कुछ सेट्टियोंने और भी कुछ भूमियाँ दीं । रोद हलोजके पुत्र बीरोजने यह शासन लिखा ।] [EC, XII, Tiptur tl., n° 101] १ ऊपर जो १०७८ ई० काल दिया हुआ है, वह विनयादित्य के कालका है । उसके लड़के बल्लालदेवका ( ११०१-११०४ ई० ) नहीं, और न भूलोकमल (११२६-११३८ ई० ) का । शि० २१
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy