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________________ हुम्मचके लेख वादिराजदेवकी प्रशंसा । मजितसेन मुनींद्रकी प्रशंसा । श्रेयांसपण्डितकी प्रशंसा।] नोट:-इस शिलालेखमें समय (काल) का कोई निर्देश नहीं है और न किसी कार्य या दानका इसमें उल्लेख है। यह लेख शुद्ध प्रशंसात्मक है। [EC, VIII, Nagar,11., n° 39.] हुम्मच-संस्कृत तथा कनड़ [शक ९९९=१०७७ ई.] (पश्चिम मुख) श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ [ तीसरी पंक्तिमें 'स्वस्ति से लेकर १७ वीं पंक्ति में "कूडिर्प-सौभाग्यम तक शि० ले० नं. २१४ की ११ से ३१ की पंक्तितक मिलता है। एनिसिद बीर-देवनग्र-तनयम् ॥] अरि-बिरुद-भूभुजकळ । विरुदं बेरिन्दे किर्तुं वीर-श्रीयोळ् । नरेददटुपमातीतम् । धरेगेने भुजबळने शान्तरान्चय-तिळकम् ॥ विरुद-रिपु-नृपर शिरमम् । भरदि सेण्डाडि वीर-लक्ष्मि यनोलिसल । नरपतिगळारो धुरदोळ् । निरुतं निन्नन्ते नन्नि-शान्तर-नृपति ।। उत्तर-मधुराधीश्वरम् । उत्तम-गुणनुग्रवंश-तिळके विबुध- ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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