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________________ बलगाम्वेका लेख २४९ कुळं माडि राज्यं गेय्युत्तिन्दुः स(शोक-वर्ष ९८७ नेय विश्वावसुसंवत्सरं प्रवर्तिसुत्तमिरे निजान्वय-राजधानि-पोम्बुझ्दोळ् भुजबळ-शान्तर-जिनालयक्के माघ-मासद · सुद्ध-पञ्चमी-सोमवारमुमुत्तरायण-संक्रमणदन्दु तम्म गुरुगळ् कनकणन्दि-देवगर्गे धारा-पूर्वकं माडि हरवरियं बिट्टम् । ( यहाँ सीमाओंकी विस्तृत चर्चा आती है)। जिनशासनके कल्याणकी कामना । स्वस्ति । जब, (उन्हीं चालुक्य पदों सहित) चतुस्समुद्रपर्यन्त पृथ्वीके राज्यपर त्रैलोक्यमल्लदेव शासन कर रहे थे: तस्पादपभोपजीवी,—जिस समय, (उन शान्तरके पदों सहित जो कि शि० ले. नं० १९७ में दिखाये गये हैं), त्रैलोक्यमल्ल भुजबल-शान्तरदेव, शान्तळिगे हजारको उपदवों और कष्टोंसे मुक्तकर शासन कर रहे थे;-(उक्त मितिको), अपनी राजधानी पोम्बुर्ष में भुजबल-शान्तर जिना. लयके लिये अपने गुरु कनकनन्दि-देवको हरवरिका दान किया थाः इसकी सीमायें । बसदिका ऐसा शासन (लेख) है।] [EC, VIII, Nagar tl., n° 59] २०४ बलगाम्बे-संस्कृत तथा कमड़ । _ [शक ९९०=१०६८ ई.] [ बलगाम्वेमें, बडगियर-होण्डके पासके भांगनमें पाषाण-खण्डोंपर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोवलाञ्चनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ खस्ति समस्त-भुवनाश्रय श्री-पृथ्वी-वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर ....... भट्टारकं सत्याश्रय-कुल-तिलकं चालुक्याभरणं श्रीमत्त्रैलोक्यमल्लनाहवम....."सुख-संकथा-विनोददि राज्यं गेय्युत्तमिरेयिरे ॥ वृत्त । मलेपर् म्माराम्परिल्लक्रमदितराटHरिल्लुर्कि दर्छन् । दले वावुद्वृत्तरिल्लोडजि-वेरसु कुरुम्बर्तरुम्बिपरिल्ले ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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