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________________ जैन- शिलालेख संग्रह श्रीमत्-पट्टण-स्वामि-नोक्कय-सेट्टि स ( स ) कवर्ष ९८४ शुभकृत्संवत्सरद कार्त्तिक-मुद्ध ५ आदित्यवारदन्दु तन्न माडिसिद पट्टण-स्वामि-जिनालय के वीर सान्तर- देवङ्गे ( यहाँ दानकी विस्तृत चर्चा आती है ) मर्व्व-बाधा- परिहार- मागि माडि तन्न सहधमिंगळू सकलचन्द्र - पण्डितदेव कोट्टम् ( यहाँ वे ही हमेशा के अन्तिम वाक्याव - यव आते हैं ) । २३८ इष्टनोनिविदेव तेगेन्दोसे दित्तुदम् । दुष्टनोर्व्वनदर फल सले तिन्दवम् । सिट्टि - मेले परमात्मने बन्देगोत्रदम् । कट्टिकोण्ड बिदिरन्ते कुल-क्षयमागुगुम् ॥ ( वे ही अन्तिम श्लोक 1 ) रेन्द्र अक्कर || ईवरेन्द्रत्ति पल्लिरिंदरदप तागि बेळ्दपर लेजेगेड कावमरणेन्दु वन्दपर त्तार िमरेवकुं बाल्वेमेन्दु साम-बङ्गदा मरेवकुं बन्... विडियं निदे पट्टियदन्दु जीवजीवके तक के बारदे कि बरके बीर-देव || धुरदोलभि-लतेयनुच्चिदड् । अरि-नृप -युवतियर मुगुळ कङ्कणदा - कीलू | तरतरदिनुळिचदवु निज- । कर-खळगमवर्के 'कीले शान्तर - नृपति || बीरुगन दोरेगे दोरे पेर- 1 रारुं बन्दवरी-कृतयुगं त्रेते द्वा । परं कलि-युगदोळगण । बीररुदार - प्रतापगाळू धर्म - परर ॥
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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