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________________ जैन- शिलालेख संग्रह १९५ चिक- हनसोगे - कन्नड़ [ विना काल-निर्देशका, पर संभवतः लगभग १०६० ई० का ] [ चिक्क-हनसोगे ( हनसोगे परगना ) में जिन - बस्तिके दरवाजेके ऊपर ] श्री वीर राजेन्द्र ननि चङ्गाळव देवम्र्म्माडिसिद पुस्तक- गच्छद बसदि [ वीर-राजेन्द्र नन्नि चङ्गाळ्व-देवने पुस्तकगच्छकी बसदि बनवाई ] [ EC, IV, Yedatore tl., n° 22.] १९६ चिक्क- हनसोगे – कन्नड़ [ विना काल-निर्देशका, पर सम्भवतः लगभग १०६० ई० ] [ जिन-बस्तिमें, दरवाजेपर पड़े हुए पत्थरोंपर ] दशाशिर - प्रहारियप्प रामस्वामि विट्ट परमेश्वर - दत्तियं शकनोड विक्रमादित्यं पडिसलिसि - तान......मुन्निनन्ते बडगण - तुम्बिन नीर्व्वरिदनितु नेलनं ख..... .....तास्त्र - शासन-पूर्वकं कोहरदे मारसिंह देव पडिसलिसलेन्ता - परमेश्वर - दत्तिय बडगण तूम्बिन नीर्व्वरिदनितु "मुन्निनन्ते कादना-रामर दत्तिय ताम्ब - शासन पडिय........ मडि ईयकर बरेदवदं ननि चङ्गाळ्व-देवपुनवं माडिसिद बसदिय तुम्बिनलक्कर प्रतिमेयु माडिद तपिदर्गे कविलेंगे तपिद पाप २३६ W [ पहले की ही तरह, उत्तरीय नहरसे, सींची गई सारी जमीन, दशशिर ( रावण ) के वधक रामस्वामीके द्वारा जो छोड़ दी गई थी, परमेश्वरने जिसे दिया था, और जिसे इनामके तौर पर शक तथा विक्रमादित्यने भी दिया था, - ताम्बेके शासन ( लेख ) पूर्वक दी । परमेश्वर प्रदत्त तथा उत्तरीय नहरसे सींची गई सारी जमीनका दान मारसिंह देवने किया और पहले की ही तरह उसका रक्षण भी किया ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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